Bharati Bhawan Class 10 Biology Solutions | Chapter 2 Long Type Question Answer | भारती भवन कक्षा 10 प्रश्न उत्तर
1. अवायवीय एवं वायवीय श्वसन के विभेदों को स्पष्ट करें।
उत्तर : अवायवीय श्वसन और वायवीय श्वसन में निम्लिखित अंतर है :
2. पायरुवेट के विखंडन के विभिन्न पथों के बारे में लिखें।
उत्तर : ऑक्सीजन के अनुपस्थिति में ग्लूकोज के एक अणु के आंशिक विखंडन से पायरुवेट के दो अणु का निर्माण होता है । यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में होता है। इस प्रक्रिया में ग्लूकोस-अणु का आंशिक विखंडन होता है इसलिए उसमें निहित ऊर्जा का बहुत छोटा भाग ही मुक्त हो पाता है। शेष ऊर्जा पायरुवेट के बंधनों में ही संचित रह जाती है । आगे पायरुवेट का विखंडन निम्लिखित चरणों में होती है
(i) पायरुवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। यह क्रिया किण्वन कहलाती है जो यीस्ट (yeast) में होता है।
(ii) ऑक्सीजन के अभाव में हमारी पेशियों में पायरुवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है। हमारी पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संचय से दर्द होने लगता है। बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के बाद हमारी मांसपेशियों में इसी कारण ऐंठन या तकलीफ होती है।
(iii) ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल का निर्माण होता है। चूँकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है, अतः इसे वायवीय श्वसन कहते हैं।
3. स्थलीय कीटों में श्वसन अंग की रचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें।
उत्तर : स्थलीय कीटों जैसे टिड्डा, तिलचट्टा में श्वसन श्वासनली या ट्रैकिया द्वारा होता है । ट्रैकिया शरीर के भीतर स्थित अत्यंत शाखित, हवा-भरी नलिकाएँ हैं जो एक ओर सीधे ऊतकों के संपर्क में होती हैं तथा दूसरी ओर शरीर की सतह पर श्वासरंध्र नामक छिद्रों के द्वारा खुलती हैं।
कीटों में ट्रैकिया के द्वारा श्वसन में गैसों का आदान-प्रदान रक्त या रुधिर के माध्यम से नहीं होता है। इसका कारण यह है कि कीटों के रक्त में हीमोग्लोबिन या उसके जैसे कोई रंजक (pigment), जिसमें ऑक्सीजन को बाँधने की क्षमता हो, नहीं पाए जाते हैं।
4. मछली के श्वसन अंग की संरचना तथा श्वसन विधि का वर्णन करें।
उत्तर : मछली में श्वसन गिल्स द्वारा होता है । गिल्स विशेष प्रकार के श्वसन अंग हैं जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं। श्वसन के लिए गिल्स का होना मछलियों के विशेष लक्षण हैं।
प्रत्येक मछली में गिल्स दो समूहों में पाए जाते हैं। गिल्स के प्रत्येक समूह सिर के पार्श्व भाग में आँख के ठीक पीछे स्थित होते हैं। प्रत्येक समूह में कई गिल्स आगे से पीछे की ओर श्रृंखलाबद्ध तरीके से व्यवस्थित होते हैं। हर गिल एक चपटी थैली में स्थित होता है जिसे गिल्स कोष्ठ कहते हैं। गिल कोष्ठ एक ओर आहारनाल की ग्रसनी या फैरिक्स में खुलता है तथा दूसरी ओर शरीर के बाहर खुलता है। प्रत्येक गिल कोष्ठ में कई गिल पटलिकाएँ होती हैं। मछलियों में जल की धारा मुख से आहारनाल के फैरिक्स में पहुँचता है। यहाँ जल की धारा में स्थित भोजन तो फैरिक्स से ग्रासनली में चला जाता है, परंतु जल गिल कोष्ठों में तथा फिर शरीर के बाहर चला जाता है। इस प्रकार, गिल्स लगातार जल के संपर्क में रहते हैं । जिससे जल में घुले ऑक्सीजन गिल्स की रक्त वाहिनियों में स्थित रक्त में चला जाता है तथा रक्त का कार्बन डाइऑक्साइड जल में चला जाता है। इस प्रकार, श्वसन गैसों (ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड) का आदान-प्रदान रक्त और जल के बीच विसरण के द्वारा होता रहता है
Respiration Chapter Bharati Bhawan Solutions
5. कीटों में ऑक्सीजन सीधे ऊतकों को क्यों पहुँचाया जाता है? इस विधि में प्रयुक्त रचनाओं का वर्णन कार्यविधि के साथ करें।
उत्तर : स्थलीय कीटों जैसे टिड्डा, तिलचट्टा में श्वसन श्वासनली या ट्रैकिया द्वारा होता है । ट्रैकिया शरीर के भीतर स्थित अत्यंत शाखित, हवा-भरी नलिकाएँ हैं जो एक ओर सीधे ऊतकों के संपर्क में होती हैं तथा दूसरी ओर शरीर की सतह पर श्वासरंध्र नामक छिद्रों के द्वारा खुलती हैं।
कीटों में ट्रैकिया के द्वारा श्वसन में गैसों का आदान-प्रदान रक्त या रुधिर के माध्यम से नहीं होता है। इसका कारण यह है कि कीटों के रक्त में हीमोग्लोबिन या उसके जैसे कोई रंजक (pigment), जिसमें ऑक्सीजन को बाँधने की क्षमता हो, नहीं पाए जाते हैं।
6. मनुष्य के श्वसनांगों की रचना का वर्णन करें।
उतर :
श्वसन अंग :—
➥ मनुष्य में नासिका छिद्र, स्वरयंत्र या लैरिक्स , श्वासनली या ट्रेकिया तथा फेफडा मिलकर श्वसन अंग कहलाते हैं
नासिका ( Nose) :—
➥ नासिका मुखद्वार के ठीक ऊपर स्थित होती है। इसमें दो लगभग गोलाकार बाह्य नासिका छिद्र होते हैं जो भीतर की ओर दो अलग-अलग नासिका वेश्मों में खुलते हैं। दोनों नासिका वेश्म एक ऊँची, लंबवत, अस्थि की बनी नासा पट्टिका के द्वारा एक-दूसरे से पृथक होते हैं।
नासिका वेश्म अंदर की ओर ग्रसानी में कंठद्वार समीप खुलता है। ग्रसनी कंठद्वार के ठीक नीचे स्वरयंत्र या लैरिंक्स में खुलती है लैरिंक्स पीछे की ओर श्वासनली या ट्रैकिया में खुलती हैं
ट्रैकिया :—
➥ ट्रैकिया करीब 11 cm लंबी नली है जिसका व्यास लगभग 16mm का होता है। श्वासनली या ट्रैकिया वक्षागुहा में विभाजित होकर दो श्वासनियों ( bronchi) में में बट जाते है । प्रत्येक श्वासनी फेफड़ा में प्रवेश कर श्वासनिकाओं विभाजित हो जाता है । फेफड़ा के अंदर प्रत्येक श्वासनिका फिर पतली शाखाओं में बंट जाती है जिन्हे वायुकोष्ठका वाहिनियां कहते हैं वाहिनियां अनेक छोटे—छोटे वायुकोष्टो ( air sac or alveoli) में खुलती है
फेफड़ा :—
➥ फेफड़े मनुष्य की वक्षगुहा में स्थित होते हैं। फेफड़ा दो संजी, गुलाबी, थैलीनुमा रचना है जो हृदय के प्लूरल गुहाओं में स्थित होता है प्लूरल गुहा के चारों ओर प्लूरल मेम्ब्रेन का पतला आवरण होता है जिसे पैराइटल प्लूरा कहते हैं।
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7. मनुष्य में श्वसन क्रिया का वर्णन करें।
उत्तर : श्वसन की क्रिया :—
श्वसन दो क्रियों की सम्मिलित रूप है
(i) प्रश्वास ( Inspiration)
(ii) उच्छवास ( Expiration)
(i) प्रश्वास ( Inspiration) :—
➥ इस क्रिया में हवा नासिक से फेफड़ा तक पहुंचती है जहां इसका ऑक्सीजन फेफड़ा की दीवार में स्थित रक्त कोशिकाओं के रक्त में चला जाता हैं।
(ii) उच्छवास ( Expiration) :—
➥ इस क्रिया में रक्त से फेफड़ा में आया कार्बन डाइऑक्साइड बची हवा के साथ नासिक से बाहर निकल जाता हैं
श्वसन की दोनों अवस्थाएं प्रश्वास तथा उच्छावास मिलकर श्वासोच्छवास ( breathing) कहलाती है
8. श्वसन एवं श्वासोच्छ्वास के बीच क्या विभेद है?
उत्तर : श्वसन और श्वासोच्छ्वास में निम्नलिखित अंतर हैं-
9. कोशिकीय श्वसन का वर्णन करें।
उत्तर : कोशिकीय श्वसन :
यह एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें कोशिकाएँ ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए ग्लूकोज जैसे कार्बनिक अणुओं का विघटन करती हैं। इस प्रक्रिया से ATP के निर्माण होती है।
कोशिकीय श्वसन के प्रकार:
(i) वायवीय श्वसन :
➥ यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है।
➥ ग्लूकोज का पूर्ण विघटन होता है, जिससे ऊर्जा के रूप में अधिक मात्रा में एटीपी उत्पन्न होता है।
(ii). अवायवीय श्वसन :
➥ यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है।
➥ इसमें ग्लूकोज का आंशिक विघटन होता है
➥ इससे लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है ।
कोशिकीय श्वसन की प्रक्रियाएँ:
ग्लाइकोलाइसिस:—
➥ यह कोशिका के साइटोप्लाज्म में होता है।
➥ ग्लूकोज का विघटन पाइरूविक अम्ल में होता है।
➥ इसमें 2 ATP का निर्माण होता है।
क्रीब्स चक्र :—
➥ यह माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।
➥ पाइरूविक एसिड से ऊर्जा का उत्पादन और कार्बन डाइऑक्साइड का निर्माण होता है
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