Bharti Bhawan Class 10 Biology Chapter 5 Questions Answer | दीर्घ उत्तरीय प्रश्र | नियंत्रण और समन्वय | Control and coordination | भारती भवन
भारती भवन जीवविज्ञान नियंत्रण और समन्वय - कक्षा 10
1. पादप हॉर्मोन्स के मुख्य उदाहरण लिखें एवं ऑक्जिन के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर :
पादप हॉर्मोन्स :—
➥ पौधो की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करनेवाले रासायनिक पदार्थ को पादप हॉर्मोन या फाइटोहॉर्मोन (phytohormone) कहते हैं।
➥ रासायनिक संघटन तथा कार्यविधि के आधार पर हॉर्मोन्स को प्रकार पाँच प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है-
i. ऑक्जिन (auxin),
ii. जिबरेलिन्स (gibberellins),
iii. साइटोकाइनिन (cytokinin),
iv. ऐबसिसिक एसिड (abscisic acid),
v. एथिलीन (ethylene)
ऑक्जिन के प्रभाव :
➥ ऑक्जिन एक महत्वपूर्ण पादप हॉर्मोन है, जो पौधों की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। इसके प्रभाव निम्नलिखित हैं:
(i) यह कोशिकाओं के बढ़ने और फैलने में सहायक होता है।
(ii) ऑक्जिन पौधों की टहनियों को प्रकाश की ओर मुड़ने में सहायता करता है।
(iii ) यह जड़ के विकास को नियंत्रित करता है और नई जड़ों के निर्माण में सहायक होता है।
(iv) कुछ पौधों में बीज के बिना फल बनने की प्रक्रिया में सहायता करता है।
(v) शीर्ष कलिका में ऑक्जिन की उपस्थिति पार्श्वीय शाखाओं के विकास को रोकती है।
(vi) यदि उचित मात्रा में दिया जाए तो यह जड़ बनने की प्रक्रिया को भी बढ़ावा देता है।
(v) यह पत्तियों और फलों के गिरने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
2. वृद्धि-नियंत्रक पदार्थ से आप क्या समझते हैं? पौधों में रासायनिक समन्वय कैसे होता है?
उत्तर :
वृद्धि-नियंत्रक :
➥ वृद्धि-नियंत्रक पदार्थ वे कार्बनिक यौगिक होते हैं, जो पौधों में बहुत कम मात्रा में बनते हैं और उनकी वृद्धि, विकास तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। इन्हें पादप हार्मोन या वृद्धि नियामक भी कहा जाता है।
मुख्य वृद्धि-नियंत्रक पदार्थ:
(i) ऑक्जिन :—
➥ कोशिका वृद्धि, शीर्ष प्रधानता और जड़ बनने में सहायक।
(ii) जाइबरिलिन :—
➥ तने की लंबाई बढ़ाने, अंकुरण और फूल बनने में सहायक।
(iii) साइटोकाइनिन :—
➥ कोशिका विभाजन और पार्श्वीय कलिकाओं के विकास में सहायक।
(iv) एब्सिसिक एसिड :—
➥ पत्तियों और फलों के झड़ने तथा पौधे में तनाव (stress) को नियंत्रित करने में सहायक।
(v) एथिलीन :—
➥ फलों को पकाने और फूल बनने में सहायक।
पादपों में रासायनिक समन्वय पादप हॉर्मोनों के द्वारा होता है। पादप विशिष्ट हॉर्मोनों को उत्पन्न करते हैं; जो उसके विशेष भागों को प्रभावित करते हैं। पादपों में प्ररोह प्रकाश के आने की दिशा की ओर ही बढ़ता है। गुरुत्वानुवर्तन जड़ों को नीचे की ओर मोड़कर अनुक्रिया करता है। इसी प्रकार जलानुवर्तन और रासायनानुवर्तन होता है। पराग नलिका का बीजांड की ओर वृद्धि करना रसायनानुवर्तन का उदाहरण है।
3. जिबरेलिन्स एवं साइटोकाइनिन के कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर :
जाइबरिलिन्स के कार्य : —
(i) यह पौधों के तनों की लंबाई बढ़ाने में सहायक होता है,
(ii) यह बीजों में सोए हुए भ्रूण को सक्रिय कर अंकुरण को तेज करता है।
(iii) कुछ पौधों में यह फूल आने की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है।
(iv) यह कुछ फलों के आकार को बढ़ाने में सहायक होता है, जैसे अंगूर और सेब।
साइटोकाइनिन का कार्य :
(i) यह कोशिका विभाजन को बढ़ावा देकर पौधों की वृद्धि में मदद करता है।
(ii) यह पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा बनाए रखता है, जिससे वे देर तक हरी रहती हैं।
(iii) यह कुछ फलों के आकार को बढ़ाने में सहायक होता है,
4. तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन की संरचना का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर : तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन :—
➥ तंत्रिका कोशिका, जिसे न्यूरॉन कहा जाता है, हमारे शरीर की मूलभूत कार्यात्मक और संरचनात्मक इकाई है प्रत्येक न्यूरॉन में एक ताराकार कोशिकाकाय होता है जिसे साइटॉन कहते हैं। साइटॉन में कोशिकाद्रव्य तथा एक बड़ा न्यूक्लियस होता है। कोशिकाद्रव्य में अनेक निस्सल कणिकाएँ पाई जाती है। साइटॉन से अनेक पतले तंतु या प्रवर्धन निकले होते हैं। इन तंतुओं में से एक, जो अन्य की अपेक्षा बहुत लंबा होता है, अक्ष या एक्सॉन कहलाता है। एक्सॉन में कोशिकाद्रव्य भरे होते हैं। एक्सॉन के अतिरिक्त अन्य प्रवर्धन जो सामान्यतः छोटे और शाखित होते हैं, डेंड्राइट्स कहलाते हैं। डेंड्राइट का स्वतंत्र शिरा शाखित होता है। डेंड्राइट्स विभिन्न प्रकार की संवेदनाओं को संवेदी अंगों (जैसे कान, नाक, जीभ आदि) से ग्रहण कर साइटॉन को पहुँचाते हैं। साइटॉन में संवेदना, विद्युत आवेग में परिवर्तित हो जाता है। फिर एक्सॉन के द्वारा तंत्रिका आवेग आगे की ओर बढ़ते हैं। एक्सॉन में आवेग का चालन साइटॉन से दूर होता है, जबकि डेंड्राइट्स संवेदना को साइटॉन की ओर ले जाते है।
सूत्रयुग्मन गाँठें या साइनेप्टिक नॉब्स :—
➥ एक्सॉन अपने अंतिम छोर पर शाखित हो जाते हैं और प्रत्येक शाखा सूक्ष्म गाँठ जैसी रचना में समाप्त हो जाती है जिन्हें सूत्रयुग्मन गाँठें या साइनेप्टिक नॉब्स कहते हैं। एक्सॉन दूसरे न्यूरॉन के डेंड्राइट्स से जुड़कर संपर्क स्थापित करते हैं। इस स्थान को सिनैप्स कहते हैं सिनैप्स पर एक्सॉन की स्वतंत्र शाखाएँ एसीटाइलकोलीन स्रावित करती हैं, जो तंत्रिका आवेग को एक्सॉन से दूसरे न्यूरॉन की डेड्राइट्स में पहुँचाती हैं।
मेडुलरी या मायलिन शीथ :—
➥ एक्सॉन के चारों तरफ श्वेत चर्बीदार पदार्थों का एक आवरण होता है जिसे मेडुलरी या मायलिन शीथ कहते हैं।
रेनवियर के नोड :—
➥ वे जगह जहाँ मायलिन शीथ नहीं होते हैं, रेनवियर के नोड कहलाते हैं । दो नोड्स के बीच के भाग को इंटरनोड कहते हैं
न्यूरिलेमा :—
मायलिन शीथ के ऊपर एक पतली झिल्ली होती है जिसे न्यूरिलेमा कहते हैं।
श्वान कोशिका :—
➥ न्यूरिलेमा चपटी तथा लंबवत कोशिकाओं की बनी होती है। इन कोशिकाओं को श्वान कोशिका कहते है जब एक्सॉन बहुत लंबा होता है तो वह तंत्रिका तंतु कहलाता है कई तंत्रिका तंतुओं के मिलने से तंत्रिका बनता है।
5. मनुष्य के मस्तिष्क की संरचना का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर :—
मनुष्य का मस्तिष्क :—
➥ तंत्रिका तंत्र के द्वारा शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वयन में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका मस्तिष्क की ही होती है ! मस्तिष्क का औसत आयतन लगभग 1650 mL तथा भार लगभग 1.5 kg होता है
मस्तिष्क खोपड़ी की मस्तिष्कगुहा या क्रेनियम के अंदर सुरक्षित रहता है
मस्तिष्क को तीन प्रमुख भागो में बटा जाता है
i. अग्रमस्तिष्क
ii. मध्यमस्तिष्क
iii. पश्चमस्तिष्क
i. अग्रमस्तिष्क :—
➥ यह दो भागों में बटा होता है
(क) प्रमस्तिष्क या सेरीब्रम
(ख) डाइएनसेफलॉन
(क) प्रमस्तिष्क या सेरीब्रस :—
➥ यह मस्तिष्क के शीर्ष, पार्श्व तथा पश्च भागों को ढँके रहता है। यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग (प्रायः 2/3 हिस्सा) है। यह एक अनुदैर्ध्य खाँच द्वारा दाएँ एवं बाएँ भागों में बँटा होता है, जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध कहते हैं। दोनों गोलार्द्ध तंत्रिका ऊतकों से बना कॉर्पस कैलोसम नामक रचना के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। गोलाई में अनेक अनियमिताकार उभरी हुई रचनाएँ होती हैं जिन्हें गाइरस कहते हैं। दो गाइरस के बीच अवनमन वाले स्थान को सल्कस कहते हैं।
(ख) डाइएनसेफलॉन :—
➥ अग्रमस्तिष्क का यह भाग प्रमस्तिष्क गोलार्दों के द्वारा ढँका होता है। यह कम या अधिक ताप के आभास तथा दर्द और रोने जैसी क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
ii. मध्यमस्तिष्क :—
➥ यह मस्तिष्क स्टेम का ऊपरी भाग है। इसमें अनेक तंत्रिका कोशिकाएँ (केंद्रिकाएँ) कई समूहों में उपस्थित होती हैं।
➥ इसमें संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केंद्र होते हैं।
3. पश्चमस्तिष्क : —
ये दो भागो में बांटा होता है
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम
(ख) मस्तिष्क स्टेम
(क) अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम :—
➥ यह मुद्रा, समन्वय, संतुलन, ऐच्छिक पेशियों की गतियों इत्यादि का नियंत्रण करता है।
➥ यदि मस्तिष्क से सेरीबेलम को नष्ट कर दिया जाए तो सामान्य ऐच्छिक गतियों असंभव हो जाएँगी।
(ख) मस्तिष्क स्टेम :—
➥ ये दो भागो में बांटा होता है
(i) पॉन्स वैरोलाई
(ii) मेडुला ऑब्लांगेटा
(i) पॉन्स वैरोलाई :—
➥ तंत्रिका तंतुओं से निर्मित पॉन्स (pons) मेडुला के अग्रभाग में स्थित होता है। यह श्वसन को नियंत्रित करता है।
(ii) मेडुला ऑब्लांगेटा :—
➥ यह बेलनाकार रचना है जो पीछे की ओर स्पाइनल कॉर्ड या मेरुरज्जु के रूप में पाया जाता है। स्पाइनल कॉर्ड मस्तिष्क के पिछले सिरे से शुरू होकर रीढ़ की हड्डियों में न्यूरल कैनाल के अंदर से होता हुआ नीचे की ओर रीढ़ के अंत तक फैला रहता है। इसी में अनैच्छिक क्रियाओं के नियंत्रण केंद्र स्थित होते हैं। मेडुला द्वारा आवेगों का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका-केंद्र होते हैं जो हृदय-स्पंदन या हृदय की धड़कन रक्तचाप और श्वसन-गति की दर का नियंत्रण करते हैं।
6. मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अंतः स्त्रावी ग्रंथियों के नाम लिखें। पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्स्रावित हॉर्मोनों के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर : मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अतःस्रावी ग्रंथियाँ निम्लिखित प्रकार का होता हैं —
(i) पिट्यूटरी ग्रंथि
(ii) थाइरॉइड ग्रंथि
(iii) पायथाइरॉइड ग्रंथि
(iv) एड्रीनल ग्रंथि
(v) अग्न्याशय की लैंगरहेंस की द्वीपिकाएँ
(vi) जनन ग्रंथियाँ
(a) अंडाशय
(b) वृषण
पिट्यूटरी ग्रंथि और उसके हार्मोन के कार्य :—
➥ पिट्यूटरी ग्रंथि को "मास्टर ग्लैंड" कहा जाता है क्योंकि यह कई महत्वपूर्ण हार्मोन का स्राव करती है, जो शरीर की वृद्धि, विकास और अन्य ग्रंथियों के कार्य को नियंत्रित करते हैं। यह दो भागों में बंटी होती है:
(A). अग्र पिट्यूटरी ग्रंथि
A). पश्च पिट्यूटरी ग्रंथि
(A). अग्र पिट्यूटरी ग्रंथि के हार्मोन :
(i) ग्रोथ हार्मोन (GH) –
➥ शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से बौनापन (Dwarfism) और अधिकता से अत्यधिक वृद्धि (Gigantism) हो सकती है।
(ii) थायरॉयड उत्तेजक हार्मोन (TSH) –
➥ यह थायरॉयड ग्रंथि को सक्रिय कर थायरॉक्सिन हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करता है।
(iii ) एड्रेनोकोर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (ACTH) –
➥ एड्रिनल ग्रंथि को उत्तेजित कर कोर्टिसोल हार्मोन के उत्पादन में सहायता करता है।
(iv) प्रोलैक्टिन (PRL) –
➥ स्त्रियों में दूध उत्पादन को उत्तेजित करता है।
(v) ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) –
➥ महिलाओं में ओव्यूलेशन (डिंबोत्सर्जन) और पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन उत्पादन को नियंत्रित करता है।
(vi) फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (FSH) –
➥ यह पुरुषों में शुक्राणु उत्पादन और महिलाओं में अंडाणु के विकास में मदद करता है।
(A). पश्च पिट्यूटरी ग्रंथि के हार्मोन:
(i) ऑक्सीटोसिन –
➥ यह गर्भाशय की मांसपेशियों को संकुचित कर प्रसव में सहायता करता है और स्तनपान के दौरान दूध निष्कासन में मदद करता है।
7. एड्रीनल और जनन ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित हॉर्मोनों और उनके कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर :
एड्रीनल ग्रंथि :—
➥ यह ग्रंथि प्रत्येक वृक्क के ऊपरी सिरे पर अंदर की ओर स्थित रहती है।
➥ एड्रीनल ग्रंथि के दो भाग होते हैं — बाहरी कर्टिक्स और अंदरूनी मेडुला
एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य :—
(i) ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स : —
(i) भोजन-उपापचय में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(ii) ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा-उपापचय का नियंत्रण करते हैं।
(ii) शरीर में जल एवं इलेक्ट्रोलाइट्स के नियंत्रण में भी ये सहायक होते हैं।
(ii) मिनरलोकॉर्टिक्वायड्स :—
➥ इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है। ये शरीर में जल-संतुलन को भी नियंत्रित करते हैं।
(iii) लिंग हॉर्मोन :—
➥ ये हॉर्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्द्धन, बाह्यलिंगों, बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन-आचरण का नियंत्रण करते हैं।
एड्रीनल मेडुला द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य :—
(i) एपिनेफ्रीन : —
➥ इसे एड्रीनिन अथवा एड्रीनालिन भी कहते हैं।
➥ अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तेजना की स्थिति में इस हॉर्मोन का स्राव होता है।
(ii) नॉरएपिनेफ्रीन :—
➥ ये समान रूप से हृदय-पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते हैं। परिणामस्वरूप, रक्तचाप बढ़ जाता है। एपिनेफ्रीन रक्त शर्करा की मात्रा को शीघ्रता से बढ़ाता है।
8. जनन ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित हॉर्मोनों और उनके कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर : जनन ग्रंथियाँ
(a) अंडाशय
(b) वृषण
अंडाशय :—
➥ ये मुख्यत: एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन स्रावित करता है
बालिकाओं के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले सभी परिवर्तन इन हॉर्मोनों के कारण ही होते हैं।
वृषण :—
➥ इससे स्रावित हॉर्मोन को एंड्रोजेन्स कहते है। सबसे प्रमुख एंड्रोजेन हॉर्मोन को टेस्टोस्टेरॉन कहते हैं। यह हॉर्मोन पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्द्धन एवं यौन-आचरण को प्रेरित करता है।
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