Bharti Bhawan Class 10th Biology Chapter 4 questions Answer | दीर्घ उत्तरीय प्रश्र
1. कृत्रिम वृक्क क्या है? यह कैसे कार्य करता है?
उत्तर : कृत्रिम वृक्क एक विशेष मशीन होती है, जिसे डायलिसिस मशीन कहा जाता है। यह मशीन उन रोगियों के लिए उपयोग की जाती है जिनके वृक्क (किडनी) क्षतिग्रस्त हो गए हैं और वे शरीर से विषैले पदार्थों, अतिरिक्त जल, खनिज तथा यूरिया को बाहर निकालने में असमर्थ होते हैं।
कृत्रिम वृक्क का कार्य करने की प्रक्रिया:
(i) रोगी के धमनी से रक्त निकालकर उसे 0°C तक ठंडा किया जाता है।
(ii) रक्त को प्रतिस्कंदक (anticoagulant) से उपचारित किया जाता है ताकि यह तरल अवस्था में बना रहे।
(iii) इसके बाद रक्त को डायलाइजर में भेजा जाता है, जिसमें डायलिसिस फ्लूइड भरा होता है।
(iv ) डायलाइजर में एक आंशिक रूप से पारगम्य सेलोफेन झिल्ली होती है, जो रक्त से नाइट्रोजनी विकारों (जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन) को बाहर निकालने में मदद करती है।
(v) रक्त से विषैले पदार्थ डायलिसिस फ्लूइड में विसरित हो जाते हैं और शुद्ध रक्त बचता है।
(vi) इसके बाद रक्त को शरीर के सामान्य तापमान पर लाया जाता है और शिरा के माध्यम से रोगी के शरीर में वापस भेज दिया जाता है।
2. मनुष्य में वृक्क तथा उससे संबद्ध उत्सर्जी अंगों का वर्णन करें।
उत्तर : मनुष्यों में उत्सर्जन की प्रक्रिया मुख्य रूप से वृक्क द्वारा नियंत्रित की जाती है। वृक्क शरीर से नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट (जैसे यूरिया, यूरिक एसिड), अतिरिक्त जल और लवणों को बाहर निकालने में सहायता करते हैं। वृक्कों के साथ कुछ अन्य अंग भी उत्सर्जन प्रक्रिया में सहायक होते हैं, जिन्हें उत्सर्जी तंत्र के भाग के रूप में जाना जाता है।
(i ) . वृक्क : —
- मनुष्यों में एक जोड़ी वृक्क होते हैं, जो पीठ के निचले भाग में मेरुदंड के दोनों ओर स्थित होते हैं।
- प्रत्येक वृक्क का आकार गुर्दे के समान होता है और यह लगभग 10-12 सेमी लंबा, 5-7 सेमी चौड़ा और 150 ग्राम वजन का होता है।
- वृक्कों की मुख्य इकाई नेफ्रॉन होती है, जो रक्त को छानकर मूत्र बनाने का कार्य करती है।
उत्सर्जी तंत्र के अन्य भाग:
(i) मूत्रवाहिनी :
- प्रत्येक वृक्क से एक मूत्रवाहिनी निकलती है, जो मूत्र को मूत्राशय तक ले जाती है।
- मूत्रवाहिनी का जो शीर्ष भाग वृक्क से बाहर निकलता है, वह थोड़ा मोटा होता है, जिसे मूत्रवाहिनी की श्रोणि कहा जाता है।
- यह नलीनुमा संरचना मूत्र को गुरुत्वाकर्षण और पेशी संकुचन के माध्यम से नीचे की ओर मूत्राशय तक पहुँचाती है।
- यह पतली नलिकाएँ होती हैं, जो प्रत्येक वृक्क से निकलती हैं और मूत्राशय तक जाती हैं।
- मूत्रवाहिनी का कार्य वृक्क से बनने वाले मूत्र को मूत्राशय तक पहुँचाना है।
(ii) मूत्राशय —
- यह नाशपाती के आकार की पतली दीवार वाली थैली होती है।
- मूत्राशय उदरगुहा के पिछले भाग में, मलाशय (rectum) के नीचे स्थित होता है।
- यह मूत्र संग्रहण का कार्य करता है और जब मूत्र की मात्रा अधिक हो जाती है, तो यह पेशियों के संकुचन द्वारा मूत्र को बाहर निकालने में सहायता करता है।
(iii) मूत्रमार्ग (Urethra):
- मूत्राशय से मूत्रमार्ग नामक नली निकलती है, जो मूत्र को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है।
- इसका अंतिम छोर मूत्रद्वार कहलाता है, जिससे मूत्र बाहर निकलता है।
3. वृक्क की आंतरिक संरचना का वर्णन करें।
उत्तर : वृक्क की आंतरिक संरचना जटिल होती है और इसे मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है—बाहरी प्रतिस्थ भाग (Cortex) और भीतरी अंतस्थ भाग (Medulla)।
(i) वृक्क की बाहरी संरचना :— प्रत्येक वृक्क बाहर से संयोजी ऊतक तथा अरेखित पेशियों से बना एक पतले कैप्सूल से ढँका होता है।
( ii) वृक्क के आंतरिक संरचना :—
- वृक्क के अंदर बाहरी प्रतिस्थ भाग (Cortex) और भीतरी अंतस्थ भाग (Medulla) पाया जाता है।
- अंतस्थ भाग 15-16 पिरामिड जैसी संरचनाओं से बना होता है, जिन्हें वृक्क-शंकु (Pyramid of the Kidney) कहा जाता है।
- वृक्क में सूक्ष्म, लंबी, कुंडलित नलिकाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें नेफ्रॉन (Nephron) कहा जाता है।
- नेफ्रॉन, वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई (Structural and Functional Unit) है।
नेफ्रॉन की संरचना —
- प्रत्येक वृक्क में लगभग 10,00,000 नेफ्रॉन होते हैं।
- नेफ्रॉन की शुरुआत एक प्याले जैसी रचना से होती है, जिसे बोमैन-संपुट (Bowman's Capsule) कहा जाता है।
- बोमैन-संपुट के अंदर केशिका-गुच्छ (Glomerulus) नामक रक्त केशिकाओं का जाल होता है।
- बोमैन-संपुट और ग्लोमेरूलस को मिलाकर मैलपीगियन कोष (Malpighian Capsule) कहते हैं
नेफ्रों के विभिन्न भाग :—
- नेफ्रॉन में एक समीपस्थ कुंडलित नलिका और एक दूरस्थ कुंडलित नलिका होती है।
- समीपस्थ कुंडलित नलिका नीचे जाकर अवरोही चाप बनाती है।
- यह आगे जाकर अधिरोही चाप में परिवर्तित होती है।
- अवरोही और अधिरोही चाप के बीच की संरचना को हेनले का चाप कहते हैं।
- अधिरोही चाप आगे संग्राहक नलिका ( में खुलती है।
- कई संग्राहक नलिकाएँ मिलकर सामान्य संग्राहक नली) बनाती हैं, जो अंत में मूत्रवाहिनी (Ureter) से जुड़ती है।
4. वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया कैसे होती है? समझाएँ।
उत्तर : वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया मुख्य रूप से तीन चरणों में पूर्ण होती है:
(i) ग्लोमेरूलर निस्पंदन (Glomerular Filtration) : —
- ग्लोमेरूलस एक छन्ने (Filter) की तरह कार्य करता है। अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) रक्त के साथ जल, यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोस, लवण आदि को ग्लोमेरूलस तक पहुँचाती है। बोमैन-संपुट की पतली दीवार से यह मिश्रण छनकर वृक्क नलिका में चला जाता है। उच्च दाब के कारण होने वाली इस छनन क्रिया को अल्ट्राफिल्ट्रेशन (Ultrafiltration) कहते हैं। इस प्रक्रिया में प्लाज्मा के साथ आवश्यक एवं अनावश्यक लवण तथा अन्य पदार्थ छनते हैं, लेकिन कोशिकाएँ और प्लाज्मा प्रोटीन नहीं छन पाते।
(ii) ट्यूबुलर पुनरवशोषण (Tubular Reabsorption) :—
- ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेट अब नलिकाओं से होकर गुजरता है। इस दौरान वृक्क नलिकाएँ आवश्यक पदार्थों, जैसे— जल, ग्लूकोस एवं एमीनो अम्ल को पुनः अवशोषित कर लेती हैं। वहीं, अनुपयोगी और हानिकारक पदार्थों को मूत्र में छोड़ दिया जाता है।
(iii) ट्यूबुलर स्राव (Tubular Secretion) :—
- इस चरण में वृक्क नलिका की कोशिकाएँ कुछ उत्सर्जी पदार्थों को स्रावित करती हैं, जिससे वे मूत्र में मिल जाते हैं। अब यह अंतिम रूप से बनने वाला मूत्र ब्लाडर-सूत्र (Bladder Urine) कहलाता है, जो मूत्रवाहिनी (Ureter) के माध्यम से मूत्राशय (Urinary Bladder) में पहुँचता है और बाद में मूत्रमार्ग (Urethra) द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।
5. पौधों में उत्सर्जन कैसे होता है?
उत्तर : पौधों में जंतुओं की तरह उत्सर्जन के लिए कोई विशिष्ट अंग नहीं होते, बल्कि वे विभिन्न तरीकों से उत्सर्जन करते हैं।
(i) गैसीय उत्सर्जन :
- श्वसन क्रिया से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड तथा प्रकाश-संश्लेषण से उत्पन्न ऑक्सीजन विसरण (Diffusion) द्वारा बाहर निकलती है।
- यह गैसीय निष्कासन मुख्य रूप से पत्तियों के रंध्रों (Stomata) और वातरंध्रों (Lenticels) के माध्यम से होता है।
(ii). वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) :—
- पौधों में जल का निष्कासन मुख्य रूप से वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से होता है।
- यह जल वाष्प के रूप में रंध्रों, क्यूटिकल और लेंटिसल्स द्वारा बाहर निकलता है।
(iii ) उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण : —
विभिन्न चयापचयी क्रियाओं के दौरान उत्सर्जित होने वाले पदार्थों में शामिल हैं:
- टैनिन (Tannin) – वृक्षों की छाल में पाया जाता है।रे
- रेजिन (Resin) – पुराने जाइलम में संचित होता है (जैसे चीड़ के पेड़ों में)।
- गोंद (Gum) – बबूल के पौधों में पाया जाता है।
- लैटेक्स (Latex) – कुछ पौधों (जैसे पीपल, बरगद, पीला कनेर) में दूधिया पदार्थ के रूप में पाया जाता है।
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