Bharti Bhawan Class 10 Biology Chapter 6 Questions Answer | दीर्घ उत्तरीय प्रश्र

 

Bharti Bhawan Class 10 Biology Chapter 6 Questions Answer | दीर्घ उत्तरीय प्रश्र | जनन | Reproduction 


भारती भवन जीवविज्ञान कक्षा 10 अध्याय - 6 जनन 


1. विभिन्न प्रकार के अलैंगिक जनन का सचित्र एवं संक्षि विवरण दें।

उत्तर : 

अलैंगिक जनन के विभिन्न प्रकार : 

(i ). विखंडन :

सामान्यतः विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है—

       (a) द्विखंडन

       (b) बहुखंडन

(a) द्विखंडन

        ➥  जब एककोशिकीय जीव विभाजित होकर दो समान संतति कोशिकाएँ बनाता है, तो इसे द्विखंडन या द्विविभाजन कहते हैं।

उदाहरण: अमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना, जीवाणु, यीस्ट, क्लेमाइडोमोनास आदि।



(b) बहुखंडन

       ➥जब एक जीव एक साथ कई संतति कोशिकाओं में विभाजित होता है, तो इसे बहुखंडन या बहुविभाजन कहते हैं।

     ➥ प्रतिकूल परिस्थितियों में अमीबा, प्लाज्मोडियम आदि पुटी बनाकर खुद को सुरक्षित रखते हैं। सिस्ट के अंदर केंद्रक बार-बार विभाजित होकर कई संतति केंद्रक बनाते हैं। प्रत्येक केंद्रक के चारों ओर कोशिकाद्रव्य आकर कई संतति कोशिकाएँ बनती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में पुटी फट जाती है और नई कोशिकाएँ बाहर निकलकर विकसित होती हैं।

उदाहरण: अमीबा, प्लाज्मोडियम, शैवाल आदि।

(i) . मुकुलन :

         ➥  यह अलैंगिक जनन की विधि है, जिसमें जनक के शरीर पर एक उभार बनता है, जो विकसित होकर नए जीव का निर्माण करता है।

(a). एककोशिकीय जीवों में मुकुलन:

              ➥   यीस्ट में कोशिका से एक या अधिक कलिकाएँ निकलती हैं। केंद्रक विभाजित होकर एक भाग मुकुल में चला जाता है। मुकुल अलग होकर नया जीव बनाता है।

(b) बहुकोशिकीय जीवों में मुकुलन :

                ➥  हाइड्रा, स्पंज में शरीर पर मुकुल बनते हैं, जो विकसित होकर नए जीव का निर्माण करते हैं।


(iii) अपखंडन या पुनर्जनन :

             ➥  इसमें किसी जीव का शरीर खंडों में टूटकर प्रत्येक खंड से नया जीव बनता है।

उदाहरण: स्पाइरोगाइरा, हाइड्रा, प्लेनेरिया आदि।

2. ऊतक-संवर्धन कैसे संपन्न होता है? कायिक प्रवर्धन लाभों का उल्लेख करें।

उत्तर : ऊतक संवर्धन :-

               ➥  इस प्रकार के कृत्रिम कायिक प्रवर्धन में स्वस्थ वांछित पौधे से ऊतक का एक छोटा टुकड़ा काटकर ले लिया जाता है। इसे किसी बरतन में रखे पोषक पदार्थ के घोल में रखा जाता है। उपयुक्त तापमान, आर्द्रता एवं अन्य अनुकूल स्थितियों में ऊतक का यह टुकड़ा एक असंगठित पिंड बन जाता है जिसे कैलस कहते हैं। कैलस के एक छोटे भाग को पृथक कर अन्य हॉर्मोनयुक्त माध्यम में रखा जाता है जो यहाँ विकसित एवं विभेदित होकर पादपक बनाते हैं। पादपकों को जमीन में या गमले में प्रतिरोपित कर दिया जाता है जहाँ ये विकसित होकर स्वतंत्र, वयस्क पौधे बनाते हैं, जो अपने जनक पौधे के ही समान होते हैं। गुलदाउदी , शतावरी , ऑर्किड में इस विधि द्वारा नए पौधे पैदा किए जाते है । इस विधि से तैयार किए गए पौधों को एकपूर्वजक या क्लोन कहते हैं। इनमें वांछित गुणों का ह्रास नहीं होता है।

कायिक प्रवर्धन के लाभ:

(i) . तेजी से नए पौधों का निर्माण होता है।

(ii) . एक ही गुणधर्म वाले पौधे तैयार होते हैं।

(iii) . बीज रहित पौधे (जैसे केला, आलू) उगाए जा सकते हैं।

(iv) . बीमारियों से मुक्त पौधे बनाए जा सकते हैं।

(v) . कम जगह और समय में अधिक पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।


3. परागण से लेकर बीज बनने तक की क्रिया को संक्षेप उद्धृत करें।

उत्तर : परागण से लेकर बीज बनने तक की प्रक्रिया

परागण :— 

      ➥  परागकणों के परागकोश से निकलकर उसी पुष्प या उस जाति के दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र ( stigma) तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।

 यह दो प्रकार का होता है।

(i) . स्व-परागण

(ii) . पर-परागण


(i). स्व-परागण :— 

             ➥  जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हों या उसी पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हों तो इसे स्व-परागण कहा जाता है। स्व-परागण केवल उभयलिंगी पौधों में ही होता है, जैसे सूर्यमुखी, बालसम (balsam), पोर्चुलाका आदि।

(ii) . पर-परागण :— 

          ➥  जब एक पुष्प के परागकण दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचले हों तो इसे पर-परागण कहा जाता है।

 ➨  पर-परागण परागण की सामान्य विधि है 

➨  परपरागण के लिए बाह्यकर्ता की आवश्यकता होती है जो किसी एक पौधे के पुष्प के परागकोश से परागकणों को किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचाने का कार्य करता है। ये बाहरी कारक कीट, पक्षी, चमगादड़, मनुष्य, वायु, जल आदि कोई भी हो सकते हैं।

निषेचन :— 

 ➥  नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहा जाता है। परागकण वर्तिकाग्र तक पहुँचने के बाद वर्तिकाग्र की सतह से पोषक पदार्थ अवशोषित कर वृद्धि करता है। वर्तिकाग्र द्वारा स्त्रावित रसायन के प्रभाव से सर्वप्रथम परागकण से एक नली निकलती है, जिसे परागनलिका कहते हैं। निषेचन के बाद युग्मनज विभाजित होकर भ्रूण के रूप में रूप में विकसित होता है निषेचन के उपरांत अंडाशय फल में तथा बीजांड बीजों में विकसित हो जाते हैं।

4. पादप में लैंगिक एवं अलैंगिक जनन के विभेदों का विवरण करें ?

उत्तर : पादप में लैंगिक एवं अलैंगिक जनन के विभेदों का विवरण :




5. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का एक स्वच्छ नामांकित नि बनाएँ।

उत्तर : 

6. यौवनारंभ या प्यूबर्टी के समय किशोर बालक-बालिकाओ शरीर में होनेवाले परिवर्तन का वर्णन करें।

उत्तर : किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन : 
(i) काँख एवं दोनों जंघाओं के बीच तथा बाह्य जननांग के समीप बाल आने लगते हैं।

(ii). टाँगों तथा बाहुओं पर कोमल बाल उगने लगते हैं। 

(iii) . त्वचा कुछ तैलीय होने लगती है। इस अवस्था में चेहरे पर फुंसियों का निकलना भी प्रारंभ हो सकता है।

(iv) . इस अवस्था में अपने जैसे विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लगता है।

(v) . किशोर बालिकाओं के स्तनों में उभार आने लगता है। स्तन के केंद्र में स्थित स्तनाग्र के चारों ओर की त्वचा का रंग ज्यादा गाढ़ा होने लगता है

(vi). किशोर बालिकाओं में मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है

(v). किशोर बालक में मूँछ और दाढ़ी का उगना प्रारंभ होने लगता है। स्वरयंत्र या लैरिंक्स के परिपक्वता के कारण आवाज में भारीपन आने लगता है।


7. पुरुष के आंतरिक जनन अंगों का वर्णन करें

उत्तर : पुरुष के आंतरिक जनन अंगों

            ➥  पुरुष के आंतरिक जनन अंगों में वृषण, अधिवृषण, शुक्रवाहिका, स्खलन नली, मूत्रमार्ग, पुरःस्थ ग्रंथि और काउपर ग्रंथि शामिल हैं। इन अंगों का कार्य मुख्य रूप से शुक्राणु निर्माण, उनके भंडारण, परिपक्वता और परिवहन से संबंधित है।

(i) . वृषण: –

  ➨ यह पुरुष का प्रमुख जनन अंग है।

 ➨ दो अंडाकार वृषण होते हैं, जो वृषणकोष नामक थैली में स्थित होते हैं।

➨ वृषण में शुक्रजनन नलिकाएँ होती हैं, जिनमें शुक्राणु उत्पन्न होते हैं।

(ii). अधिवृषण :—

      ➥  यह एक लंबी कुंडलित नलिका होती है, जो वृषण के भीतरी किनारे से चिपकी रहती है।

 ➨ इसमें शुक्राणु परिपक्व होते हैं और निषेचन के योग्य बनते हैं।

(iii) . शुक्रवाहिका :–

➥ यह लगभग 25 cm लंबी नलिका होती है।

➨ यह शुक्राणुओं को अधिवृषण से लेकर आगे स्खलन नली तक ले जाती है।

(iv) . स्खलन नली : –

➥ यह शुक्रवाहिका और शुक्राशय की नलिका के मिलने से बनती है।

➨ यह नली शुक्राणुओं को मूत्रमार्ग तक पहुँचाने का कार्य करती है।

(v). मूत्रमार्ग : –

➥ यह एक लंबी, मांसल नली होती है।यह वीर्य को बाहर निकालने का कार्य करती है और इसमें पुरःस्थ ग्रंथि व काउपर ग्रंथि की नलिकाएँ भी खुलती हैं।

(vi). पुरःस्थ ग्रंथि

   ➥ यह मूत्राशय के नीचे स्थित होती है और एक तरल पदार्थ का स्राव करती है, जो वीर्य का एक घटक होता है।यह शुक्राणुओं के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।

(vii). काउपर ग्रंथि :–

       ➥ यह एक जोड़ी छोटी ग्रंथियाँ होती हैं जो मूत्रमार्ग में खुलती हैं।यह क्षारीय द्रव स्रावित करती हैं, जो मूत्रमार्ग को जलन से बचाने में सहायक होता है।


8. स्त्री में लैंगिक चक्र का वर्णन करें।

उत्तर : स्त्रियों में लैंगिक चक्र :— 

               ➥ स्त्रियों में यौवनारंभ या प्यूबर्टी सामान्यतः 10 से 12 वर्ष की आयु में होता है, अर्थात इस उम्र में नारी में जनन क्षमता प्रारंभ हो जाती है तथा आंतरिक जननांगों में कुछ चक्रीय क्रियाएँ होती हैं जिसे मासिक चक्र अथवा मासिक धर्म या रजोधर्म या मासिक स्राव कहते हैं। यह चक्र 28 दिनों तक चलता है। सामान्य स्थिति में प्रत्येक 28 दिन पर इसकी पुनरावृत्ति होती है | मासिक चक्र के करीब बीच में यानी करीब 14वें दिन केवल एक परिपक्व अंडाणु अंडाशय से बाहर (अंडोत्सर्ग) निकलता है। अंडोत्सर्ग के बाद फॉलिकिल का बचा भाग पीले रंग का हो जाता है। अब इसे पीतपिंड या कॉर्पस ल्यूटियम कहते हैं। कॉर्पस ल्यूटियम एक अंतःस्त्रावी ग्रंथि है। कॉर्पस ल्यूटियम प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन स्रावित करता है | प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन के प्रभाव से गर्भाशय की दीवार एंडोमेट्रियम मोटी हो जाती है। 36 घंटे के भीतर अगर यह अंडाणु शुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता है तब यह नष्ट हो जाता है। इसके साथ-साथ कॉर्पस ल्यूटियम भी निष्क्रिय होकर विकृत होने लगता है। इसके कारण हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन का स्राव भी बंद हो जाता है। प्रोजेस्टेरॉन की कमी से गर्भाशय की दीवार का अंतःस्तर अलग हो जाता है तथा अंडोत्सर्ग के करीब 2 सप्ताह बाद यानी चक्र के प्रारंभ होने के 28वें दिन रक्त, म्यूकस, गर्भाशय की दीवार से अलग हुई टूटी कोशिकाएँ तथा अंडाणु योनि से स्राव के रूप में बाहर आ जाते हैं। इसी क्रिया को मासिक स्राव कहते हैं। यह स्त्राव करीब 3 से 5 दिनों में समाप्त हो जाता है अगर अंडाणु शुक्राणु से निषेचित हो जाता है तो निषेचित अंडे का गर्भाशय में विकास होने लगता है । कॉर्पस ल्यूटियम रहकर प्रोजेस्टेरॉन तथा रिलैक्सिन हार्मोन स्रावित करता है 

9. जनसंख्या-नियंत्रण के लिए व्यवहार में लाए जाने विभिन्न उपायों का वर्णन करें।

उत्तर : जनसंख्या-नियंत्रण के उपाय :— 

प्राकृतिक विधि :— 

  ➥ मासिक स्राव के 14वें दिन के समीप तथा उससे आगे के दिनों में संभोग से दूर रहा जाए तो प्रायः अंडाणु का निषेचन नहीं होगा।

यांत्रिक विधियाँ :— 

(i) .कंडोम :— 

 ➨  यह पुरुष के लिए सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।

 ➨  कंडोम के उपयोग से नर-नारी AIDS जैसे जानलेवा लैंगीय संचारित रोगों से भी बचते हैं।

(ii) . डायाफ्राम :— 

     ➥  इसे स्त्री की योनि में डालकर गर्भाशय की ग्रीवा या सर्विक्स में बैठा दिया जाता है। इससे वीर्य फैलोपिअन नलिका में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।


(iii) . कॉपर-T तथा लूप :— 

 ➥  कॉपर-T तथा लूप धातु या प्लास्टिक के बने होते हैं। 

 ➨  इन्हें गर्भाशय में डाल दिया जाता है जिससे गर्भाशय की दीवार से बहुत अधिक मात्रा में म्यूकस निकलने लगता है। इसके कारण गर्भाशय की दीवार में भ्रूण का आरोपण नही होता है 

रासायनिक विधियाँ : 

(i). गर्भ निरोधक गोलियों :— 

 ➨  ऐस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्टेरॉन जैसे हॉर्मोन बनाए गए हैं

 ➨   स्त्रियाँ जब इनका सेवन करती हैं तब उनके सामान्य मासिक चक्र बाधित हो जाते हैं तथा अंडोत्सर्ग नहीं हो पाता है।

➨  यह जनसंख्या-नियंत्रण की अत्यंत सुरक्षित और प्रभावी विधि है।

सर्जिकल विधियाँ :— 

(i). पुरुष नसबंदी (vasectomy) :— 

 ➥  इसमें शल्य-क्रिया द्वारा शुक्रवाहिका को काटकर धागे से बाँध दिया जाता है जिससे वृषण में बननेवाले शुक्राणुओं का प्रवाह स्त्री की योनि में नहीं हो पाता है 

(ii) . स्त्री नसबंदी : — 

➥  स्त्रियों में शल्य-क्रिया द्वारा फैलोपिअन नलिका को धागे से बाँध दिया जाता है जिससे अंडाशय से अंडाणु निकलते तो हैं, परंतु फैलोपिअन नलिका से नीचे गर्भाशय की ओर नहीं जा पाते है । 


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